जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

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कैसा विकास - प्रभाकर माचवे

यह कैसा विकास
चारों और उगी है केवल
गाजर घास
गाजर घास।
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अश़आर - मुन्नवर राना

माँ | मुन्नवर राना के अश़आर
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भक्ति दोहा संग्रह - भारत-दर्शन संकलन

चार वेद षट शास्त्र में, बात मिली हैं दोय ।
दुख दीने दुख होत है, सुख दीने सुख होय ॥ १ ॥

ग्रंथ पंथ सब जगतके, बात बतावत तीन ।
राम हृदय, मनमें दया, तन सेवा में लीन ॥ २ ॥

तन मन धन दै कीजिये, निशिदिन पर उपकार।
यही सार नर देहमें, वाद-विवाद बिसार ॥ ३ ॥

चींटीसे हस्ती तलक, जितने लघु गुरु देह।
सबकों सुख देबो सदा, परमभक्ति है येह ॥ ४ ॥

काम क्रोध अरु लोभ मद, मिथ्या छल अभिमान ।
इनसे मनकों रोकिबो, साँचों व्रत पहिचान ॥ ५ ॥

श्वास श्वास भूले नहीं, हरिका भय अरु प्रेम।
यही परम जय जानिये, देत कुशल अरु क्षेम ॥ ६ ॥
 
मान धाम धन नारिसुत, इनमें जो न असक्तः ।
परमहंस तिहिं जानिये, घर ही माहिं विरत ॥ ७ ॥

प्रेिय भाषण पुनि नम्रता, आदर प्रीति विचार।
लज्जा क्षमा अयाचना, ये भूषण उर धार ॥ ८ ॥

शीश सफल संतनि नमें, हाथ सफल हरि सेव।
पाद सफल सतसंग गत, तव पावै कछु मेव ॥ ९ ॥

तनु पवित्र सेवा किये, धन पवित्र कर दान ।
मन पवित्र हरिभजन कर, हॉट त्रिविधि कल्यान  ॥ १० ॥

[ दोहा-संग्रह, गीता प्रेस, गोरखपुर ]
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तुमने हाँ जिस्म तो... | ग़ज़ल  - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi

तुमने हाँ जिस्म तो आपस में बंटे देखे हैं
क्या दरख्तों के कहीं हाथ कटे देखे हैं
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माँ पर दोहे | मातृ-दिवस - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

जब तक माँ सिर पै रही बेटा रहा जवान।
उठ साया जब तै गया, लगा बुढ़ापा आन॥
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गिरिधरराय की कुण्डलियाँ - गिरिधर कविराय

साईं समय न चूकिये, यथाशक्ति सन्मान।
को जानै को आइहै, तेरी पौंरि प्रमान॥
तेरी पौंरि प्रमान, समय असमय तकि आवै।
ताको तू मन खोलि, अंकभरि हृदय लगावै॥
कह गिरिधर कबिराय सबै यामें सुधि आई।
शीतल जल फल-फूल समय जनि चूकौ सांई॥
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संक्रान्ति - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti

सूनी सड़कों पर ये आवारा पाँव
माथे पर टूटे नक्षत्रों की छाँव
कब तक
आखिर कब तक ?
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बारह हाइकु  - मुकेश कुमार श्रीवास्तव

मुकेश कुमार श्रीवास्तव के हाइकु 

(1)
काले काजल
नयनन में बसे
बने कटार
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कविता और फसल - ओमप्रकाश वाल्मीकि | Om Prakash Valmiki

ठंडे कमरों में बैठकर
पसीने पर लिखना कविता
ठीक वैसा ही है
जैसे राजधानी में उगाना फसल
कोरे कागजों पर
...

डॉ सुधेश के दोहे - डॉ सुधेश

हिन्दी हिन्दी कर रहे 'या-या' करते यार। 
अंगरेजी में बोलते जहां विदेशी चार॥
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जवानी के क्षण में | गीत - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali

कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
कुछ जीने का आनन्द मिले
कुछ मरने का आनन्द मिले
दुनिया के सूने ऑगन में कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
...

दो क्षणिकाएँ - नवल बीकानेरी

पाँव के नीचे से 
निकल गई 
एक छोटी सी कीड़ी,
बड़ी-सी बात कहकर 
कि
मारने वाले से 
बचाने वाला बड़ा है। 
...

लीडरी का नुस्खा - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

पांच तोला तिकड़म की छाल लाकर, 
दस तोला खुशामद के अर्क में मिलाइये, 
घोट घोट मचाइये | 
शुद्ध खादी के छन्ने में छानकर पी जाइये। 

बेदर्दी के सेफ्टी रेजर से मूंछ-दाढ़ी करो साफ़ 
कोई गाली दे जाए तो कर दो उसे माफ़। 
ऊपर से देवता अन्दर प्रपंच 
बन गये नेता पूरे सौ टंच, 
पकड़ लो किसी राजनैतिक पार्टी का मंच।  

अफसरों से रखो मेल, पिलाओ उनको “सोमरस" 
खिलाओ इलायची, पान, छालियां, 
मुंह पर प्रशंसा करो, पीठ पीछे दो गालियां। 
पत्र एवं पत्रकारों पर काबू रखो, 
पी० ए० के रूप में बीबी या बाबू रक्खो। 
अथवा अपना ही निकालो कोई अखबार 
बजाओ निंदा-स्तुति के ढोल 
सेठ लोगों की खोलो पोल। 
इस विजनिस में रत्ती भर नहीं धोखा, 
हर्रा लगे न फिटकरी, रंग आयेगा चोखा।
...

भिखारी - प्रदीप चौबे

एक भिखारी ने
हमसे कहा--
गरीबों की सुनो
वो
तुम्हारी सुनेगा,
तुम
एक पैसा दोगे
वो दस लाख देगा |
हमने कहा--
तू गारंटी लेगा?
अबे
भगवान्
क्या इतना मूर्ख है,
एक पैसा लेकर
दस लाख देगा,
और नहीं दिया
तो मेरा
एक पैसा कौन वापस करेगा?
सुनते ही
भिखारी
खिसिया गया
बोला--
बाबूजी,
आपसे मिलकर
हो न हो
कोई
मजा आ गया पहुँचे हुए कलाकार हम तो
आप हैं,
केवल भिखारी हैं,
आप तो
हमारे भी
... !
...

मेरे बच्चे तुझे भेजा था  - अलका जैन

मेरे बच्चे तुझे भेजा था पढ़ने के लिए,
वैसे ये ज़िन्दगी काफी नहीं लड़ने के लिए।
तेरे नारों में बहुत जोश, बहुत ताकत है,
पर समझ की, क्या ज़रुरत नहीं, बढ़ने के लिए?
...

बड़ी तुम्हारी भूल - श्रीधर पाठक

मित्र यह बड़ी तुम्हारी भूल
जो है सुख का मूल उसे तुम समझ रहे हो शूल
...

प्रतिपल घूंट लहू के पीना | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'

प्रतिपल घूँट लहू के पीना,
ऐसा जीवन भी क्या जीना ।
...

तीन कविताएं  - डॉ सुशील शर्मा

क्या होती है स्त्रियाँ?
...

आदमी और दीवार - मंगत बादल

एक आदमी
बगावत का पोस्टर लिये
दीवार के पास खड़ा है,
यह आदमी
सही मायने में
अपने कद से बड़ा है।
उसकी आँखों में
एक जंगल उग आया है,
जिसके तमाम रास्ते
उसने याद कर लिये हैं ।
उसके कदमो में अब
भटकाव की जगह
विश्वास की झलक है
अब एक ऊंचाई तक
दीवार उसके साथ है
जहाँ उसका आक्रोश
और तनी हुई मुट्ठी
हर कोई देख सकता है।
क्रांति की जलती हुई मशाल
थामने के लिये
उसके हज़ार-हज़ार हाथ हैं
ये हाथ ही
वर्तमान के पृष्ठ पर
भविष्य का इतिहास बनाते हैं।
और उसकी प्रबल धारा से
दुर्द्धर्ष संघर्ष करते हुए
उत्सव मनाते हैं।
क्योकि दीवार जब
आदमी के संघर्ष से जुड़ जाती है
तब तमाम पुरातन मान्यतायें
नये युग की ओर मुड़ जाती है।
...

यह बता : एक प्रश्न - महेश भागचन्दका

तेरे पास क्या है
इससे जहाँ को सरोकार नहीं
तूने जहाँ के लिए किया क्या-- 'यह बता '
तू जी रहा है और जिए जाएगा, मगर
जाने से पहले क्या कर जाएगा-- 'यह बता '
जीवन का श्वासों से
श्वासों का क्रम से है इक नाता
इसके टूटने को बचा पाएगा क्या-- 'यह बता '
इतराना तेरी नहीं समय की ताक़त है
समय बदला तो क्या तू इतरा पाएगा-- 'यह बता
हम अपनी हस्ती को साथ लिये घूमते हैं
मस्ती में चूर हम जहाँ को भूलते हैं
ठुकराना हमारी आदत सी हो गई है
पर जहाँ की इक ठोकर को
हममें से कोई भी क्या सँभाल पाएग-- 'यह बता '
...

कविता का अर्थ - मदन डागा

मेरी भाषा का व्याकरण
पाणिनि नही
पददलित ही जानते हैं
क्योंकि वे ही मेरे दर्द को--
पहचानते हैं :
मेरी कविता का कमल
बगीचे के जलाशयों में नही;
झुग्गी-झोंपड़ियों के कीचड़ में खिलेगा
मेरी कविता का अर्थ
उत्तर-पुस्तिकाओं में नहीं
फुटपाथों पर मिलेगा !
...

बनारस - बेढब बनारसी

बनारसवाद साहित्य का
वह वाद है जो सबसे अलग हैं,
सबसे मिला हुआ है।
कुछ लोगों का कहना है,
बनारस में साहित्यकार नहीं हैं,
उनका कथन ठीक है।
यहाँ साहित्यकार नहीं
संत होते हैं,
और जो संत नहीं होते
वह मस्त होते हैं--
वाद से परे,
विवाद से दूर
जाह्नवी को माता
विश्वनाथ को बाबा समझकर
जीवन यापन करते हैं।
वह ताव पर लिखते हैं
बनाव से भागते हैं।
इसी परंपरा का
लघु संस्करण
मैं भी हूं।
...

ख़ुशी अपनी करे साझी - प्राण शर्मा

ख़ुशी अपनी करे साझी बता किस से कोई प्यारे
पड़ोसी को जलाती है पड़ोसी की ख़ुशी प्यारे
...

तड़पते दिल के लिए - उपेन्द्र कुमार

तड़पते दिल के लिए कुछ क़रार ले आए
कहीं से प्यार की ख़ुशबू उधार ले आए
...

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